...

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प्रकृति जिससे हम बने हैं
बगीचों मे पौधों का....
वो हवा के झोंको से नाचना,
फूलो के ऊपर पड़ती "
वो पानी की बूंदे....
जो उसकी खूबसूरती मे,
चार चाँद लगाती है....!!

पक्षियो का वो पेड़ की....
डालियों पर बैठ कर,
मधुर-धुन सुनाना "
कभी इस डाल तो कभी उस....
डाल पर फुदकते रहना,
जिनको देख कर "
मन खुश हो जाता है....!!

बगीचों के किनारे मे....
बनी वो पतली सी पगडंडी,
उनके आस-पास लगे "
वो पेड़ और उनमे से....
आती वो शीतल हवाएँ,
जिनमे एक अलग ही सुकून है....!!

उन्ही पगडंडियों के साथ लगे....
वो तरह-तरह के पौधे,
जिनकी खुशबू हवा मे  "
मानों घुल गई हो,
जो पूरे बगीचे को महकाती है....!!

पूरे बगीचे मे उगी हुई....
वो छोटी-छोटी घास,
उनके ऊपर ”
वो नंगे-पाव चलना,
मन को बहुत शांति देता है....!!

छोड़कर अपनी सभी परेशानी....
कभी देखा है प्रकृति को,
इतने ध्यान से की "
जिसको जितना देखा जाए,
लेकिन उसके बाद भी ना
कभी मन भर पाए...!!

वो प्रकृति जिससे हम बने है....
जिससे हम हर पल जुड़े है,
और जिसके बिना हम अधूरे है "
कितनी खूबसूरत है वो प्रकृति,
क्या,,,देखा है उसे इतने करीब से....!!

© Himanshu Singh