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कोरोना काल और मजदूर
हालांकी इस महामारी ने कईयो के सर काटे है...
पर स्यासी जयचंदो ने मजदुरो के पर छांटे है...
उनके सपने आंखोतले जैसे चकनाचूर हुए...
दुसरो के घर बनाने वाले खुदके घरसे दूर हुए...
ये आज के रोटी पर गीरते पसीने की हकीकत है...
और कल के रोटी की तलाश जीने की हकीकत है...
ये दास्तां है उस अनकहे किस्से की...
जो तस्वीर है देश के बडे हिस्से की...
मुसाफिर अपने घर की ओर चलते गये...
पाव के छाले कई कहानिया उगलते गये...
राहो पर लहू से लिखते राही बहुत है...
रईसी मुफलिसी में यहा खाई बहुत है...
लाल सडके किस्से अपनो के खोल रही...
सिंहासन देखो ये पटरीया कुछ बोल रही...
#जागतिक_कामगार_दिन
© आशिष देशमुख
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