...

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घर कि बेटी।
घर सजा है बहार कि तरह,
दीवारें भी जग मगा रहे हैं,
घी के दिए घर कि रौनक बढ़ा रहे हैं।
मां की भी आंखें नम हैं,
जाने किस बात का गम है ।
सोफे पर बैठ कर,
न जाने कहां खोए हैं,
हिम्मत जुटा रहे हैं,
क्योंकि कल बेटी जो विदा कर रहे हैं।
आज देख ले अपनी गुड़िया को जी भर के,
जाने कोन बांधेगी राखी कल कलाई पे।
वो दो चोटी वाली जा रही है कल,
कर दो उसकी दो चोटी ये है ही उसका आखरी पल।
मेंहदी लगी है हाथों हाथों में,
जाने कितनी बड़ी होगई बातों बातों में।
न तो मां की लोरी,
न बाबुल की डोरी,
अब और क्या भाएगा,
सिर्फ मां बाप का घर याद आएगा।
कल सूरज होगा,
चिड़िया होगी,
बस तेरी फूल सी बेटी न होगी।
बाबुल का आंगन प्यारा है
अब ये घर न हमारा है।
कल जाएगी मेरी डोली,
आखरी रात है अब मेरी,
अब के लाऊंगी उस घर कि बेटी।।


© vaishnavi Anand