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मोह का बन्धन
#पौराणिककथाओंकीपुनरवृत्ति
एक बार विष्णु भगवान कुछ रहे थे सोच
इसी वक्त नारद जी आए बैकुण्ठ धाम
प्रभु के दर्शन किये, किये हाथ जोड़ प्रणाम
मुस्कुराते हुए प्रभु देखे नारद जी की ओर
और लगे कहने, नारद जी अचानक क्यों हुआ आना
क्या किसी मनुष्य का हाल आज आपने जाना
नारद जी बोले प्रभु से,
इन मनुष्य के हाथ में सब कुछ होते हैं
फिर भी नादान मनुष्य हर बात पर रोते हैं
ना जाने किस बात से करते हैं ये इन्तजार
किसी से मोह तोड़ने को क्यों नहीं होते तैयार
प्रभु मुस्कुराते हुए बोले नारद तुम मोह समझते हो
नारद जी गर्व से बोले ,
मैं मोह के बन्धन से परे हुं
प्रभु बोले ठीक है ,इतना कहते ही
नारद जी स्वयं को पाते हैं एक घर में
जहां पर है उनका पुरा परिवार
वो हैं उनकी पत्नी है और बच्चे हैं उनके चार
अचानक से उनकी पत्नी का आज हो गया देहान्त
अब नारद जी के दर्द का रहा ना कोई अन्त
वो लगे बिलख बिलखकर रोने
अपनी किस्मत को लगे लगातार कोसने
प्रभु जी उनको शान्त करा रहे थे
नारद जी फुट फुट कर और रोये जा रहे थे
जोर जोर से रोते हुए अपनी पत्नी को लगे बुलाने
प्रभु मुस्कुराते हुए नारद जी को ,
लगे सच्चाई बताने
तुम तो ब्रम्हर्षि हो नारद फिर पत्नी कहां से आयी
ब्रम्हर्षि होते हुए तुमने शादी कब रचाई
अचानक नारद जी जैसे होश मे आए
समझ गये सब प्रभु की लीला
मोह का पाठ पढ़वाए
विष्णु भगवान जी बोले नारद से ,
तुम तो हो ब्रम्हर्षि और ज्ञानी
तुम कैसे हो गए मनुष्य जैसे अज्ञानी
नारद जी हाथ जोड़कर विनती की,
क्षमा मांगी ,खुद को लगे बताने मुरख अज्ञानी
विष्णु भगवान जी नारद जी को समझाते हुए बोले
नहीं हो नारद तुम मुरख और अज्ञानी
तुम तो हो मुनीश्वर ब्रम्हर्षि और ज्ञानी
ये तो सिर्फ तुम्हें मनुष्य की पीड़ा हैं दिखलाए
मोह के बन्धन से मनुष्य क्यों ना निकल पाए
मनुष्य का पुरा जीवन मोह के इर्द गिर्द घुमता है
अगर मोह हो जाए दुर तो फिर,
जीवन में कुछ नहीं बचता है
कुछ नहीं बचता है।।