...

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#विश्व कविता दिवस
#तुम मेरे दिल की कलम✍🏼❤

तुम मेरे दिल की कलम कब बन गई
पता ही नहीं चला।
कब मेरे दिल में आकर,मेरे दिल में
बसर कर गई, पता ही नहीं चला
बिना तूझे देखे ,बिना सोचे ,बिना जाने,
कब मेरे जज्बातों से खेल गई पता ही
नहीं चला।
जब भी कोई कुछ बोल देता, दिल को
दु:खा देता,
तब तुम ही मेरे दिल की कलम बन कर
मेरे जज्बातों को कागज पर उतार देती,
परेशान होने की जरुरत नहीं है, मैं हूं ना
तेरे साथ, ऐसा मुझे वो कहती।
और वह मेरे जज्बातों की स्याही बनकर
मेरे कोरे कागज पर ,अल्फाज बनकर
उतर जाती,
मेरे दर्दे-ए-दिल को बहुत सुकून पहुंचाती।
धीरे धीरे फिर वो मेरी कब दोस्त बन गई।
पता ही नहीं चला।
घरवालों की डाट खाकर भी उसको छोड़
ना अब नामुमकिन हुआ।
दिल को धड़काना, सांसों में आकर बैठ
जाना ,
प्यारे प्यारे दोस्तों से मिलवाना, खुद की
एक पहचान बनाना।
यह मेरी प्यारी सी दिल की कलम ने ही तो
किया।
वरना तो कोन यहां किसका, जो ध्यान रखे
इस दीप का😊

स्वरचित रचना -दीप्ति गर्ग