...

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कलम
मैं वो कलम हूँ,जो देश के दुख में रोती है|
मैं तब तक लिखती हूँ जब तक उन अंधेरी रातों से नई सुबह होती है ॥

मैं देश के लिए लिखती हूँ,
उन गुलाबी रंग ओढ़े कागज़ो के लिए नहीं बिकती हूँ॥

मैं इस देश की आवाज़ हूँ,
उन सरकारी बेड़ियों में बंधी हुई नहीं
मैं इस देश की कलम आज़ाद हूँ॥

मैं इस देश के सीने में बसी हुई जान हूँ,
मैं मुझे पकड़ने वाले हाथों का मान हूँ॥

देश के हित में बोलने वाली,
हाँ, मैं वही कलम आज़ाद हूँ॥