...

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गिल्ली ससुरे जाति है
लिखी हुई किताब की एक बात याद मुझे आती है
बारह हांथ की धोती पहनकर जब गिल्ली ससुरे जाती है
लटक मटक कर चटक चटक कर ऐसी दौड़ लगती है
मानो घर से बस्ता लेकर लड़की पढ़ने जाती है
देर हुई क्यूं बेर हुई तुझे एक भी शर्म न आती है
ऐसा कहते कहते जब सासू मा डांट लगती है
अब्ज देर नहीं होगी मा ये कह अंदर घुस जाती है
मानो सुनकर सास वचन गिल्ली बहुत डर जाती है
सूट रखा सिंगर रखा
फिर हांथ पैर धूल जाती है
गिल्ली अपने सासुरे पहुंची
और कहानी ख़तम हो जाती है
लिखी हुई किताब की एक बात याद मुझे आती है
बारह हांथ की धोती पहनकर गिल्ली ससुरे जाती है
राजू राल ( चित्रकूट)
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