...

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गज़ल- ऐसे यार चाहिए।
एक दो नहीं हमको वो बेशुमार चाहिए।
जो मेरे गम भुला सकें ऐसे यार चाहिए।

दे सकते हो तो दो मुझे औकात से ज्यादा
जो चुका न सकूं वो उधार चाहिए।

बरतने से उतरे न परतें कहीं उनकी
जैसे वो अंदर हों वैसे बाहर चाहिए।

मुझको तो ढूंढना है कोई अपने ही जैसा
जिसने जुर्म न किया हो वो गुनहगार चाहिए।

धीरे हो या तेज हम मिला सकें कदम
वक्त की एक ऐसी हमें रफ्तार चाहिए।
© वरदान