...

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बाप
आज मैंने उजड़ते देखी है उसकी जिंदगी..
जो अपने बाप की लाडली थी..
उसकी माँ का सिंधूर, उसका कंधा, उसके घर का जलता चूल्हा सब आहिस्ता आहिस्ता टूटते बिखरते देखा है..
बिन बाप की जिंदगी को पल पल तड़प में महसूस किया है..
घर का इकलौता चिराग़ जिसके कंधों पर जिमीदरियों का बोझ आ गया है..
न जाने बिन बाप के कैसे उन फर्जों को अदा किया है..
देखते ही देखते अपने पापा की जगह को ले लिया है..
जिसके साथ जिंदगी का तजुर्बा पाया है..
अब यादों और आँशुओं के सिवाय कुछ न पाया है..
जिसे अपनी नजरों से दुनिया दिखाना था..
वो महज...