...

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जानवरों का खेल
आज फिर एक बेटी की इज़्ज़त लूटी गई,
दरिंदों ने फिर बेरहमी का प्रदर्शन किया,
एक और मासूम अबला फसी बेचारी
फिर से इन जानवरों के चंगुल में इस बार,
खुद की बेटी को रख बचा घर में,
औरों की गुड़िया संग क्यूं खेलते हो ?
हाथें नहीं कांपती क्या तुम्हारी बोलो ज़रा
जब किसी बेटी की इज़्ज़त को लूटते हो,
एक बार तो ख़्याल तुम्हें आता होगा
मन में भी ज़रूर कुछ प्रश्न उठते होंगे,
फिर इंसानियत कहां दफ़नाते हो तुम
उस मासूम को तड़पा जब हंसते ज़ोर से,
खुद की बहन को देते स्नेह सम्मान, फिर ?
कैसे उस अबला को सताते और रुलाते हो
चीख से उसके दिल में कुछ तो होता होगा
एक बार भी फिर क्यों नहीं रहम आता तुम्हें
लूट...