...

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जानवरों का खेल
आज फिर एक बेटी की इज़्ज़त लूटी गई,
दरिंदों ने फिर बेरहमी का प्रदर्शन किया,
एक और मासूम अबला फसी बेचारी
फिर से इन जानवरों के चंगुल में इस बार,
खुद की बेटी को रख बचा घर में,
औरों की गुड़िया संग क्यूं खेलते हो ?
हाथें नहीं कांपती क्या तुम्हारी बोलो ज़रा
जब किसी बेटी की इज़्ज़त को लूटते हो,
एक बार तो ख़्याल तुम्हें आता होगा
मन में भी ज़रूर कुछ प्रश्न उठते होंगे,
फिर इंसानियत कहां दफ़नाते हो तुम
उस मासूम को तड़पा जब हंसते ज़ोर से,
खुद की बहन को देते स्नेह सम्मान, फिर ?
कैसे उस अबला को सताते और रुलाते हो
चीख से उसके दिल में कुछ तो होता होगा
एक बार भी फिर क्यों नहीं रहम आता तुम्हें
लूट उसे तुम लेते जी भर अपना,
फिर कैसे अपने मन को समझाते हो
एक बार तो ज़रूर ही सोचा होगा कि
इस बेचारी का आखिर कसूर ही क्या था ?????
वो लड़की थी क्या ये गुनाह था उसका,
या कपड़े कुछ छोटे पहना करती थी.......
प्यार को तुम्हारे ठुकराया था क्या कभी ????
या खुद के पैरों पर खड़ी आज़ाद थी लड़की,
देख ना सके तुम एक पल खुश उसे
ना ही उन्नति उसकी तुमसे बर्दाश्त हुई,
सोचा बराबरी क्या करू इसकी
तो सीधे उसके पंख ही कुतर डाले
लूट उसे दिल भरा ना फिर तो
काट उसे खुद को बचा लिया
कहीं जो रह गई जिंदा अगर तो
दे दिया गवाही कोर्ट में फिर क्या होगा,
पर याद रखो तुम एक बात जानवरों,
उसे रुला तुम ना कभी खुश रह पाओगे
भले ही मार दिया उसे बेरहमी से
पर तुम खुद भी कहां शांति से जी पाओगे
वो बेचारी तो मर कर स्वर्ग चली गई,
पर तुम तो नर्क में भी ठुकरा दिए जाओगे
इस जन्म का तो छोड़ ही दो अब , मगर अगले जन्म भी ये पाप तुम घिनौना,
चाह कर भी नहीं धो पाओगे कभी
तब समझ आएगा तुम्हें कसूर अपना कि,
जब हवस सवार उस पल तुम्हारे सिर पर था।

smriti Trivedy
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