आज का इंसान
कैसी कलियुग की यह मार रही
अपनों पर करती वार रही
रिश्तो का सम्मान रहा
ना अपनों का कोई मान रहा
वक्त को दोष दे रहे
पर इंसान ना इंसान रहा ...
रिश्तो की मर्यादा भूल,
पैसों के पीछे भाग रहा
मन की सुंदरता त्याग कर
तन की...
अपनों पर करती वार रही
रिश्तो का सम्मान रहा
ना अपनों का कोई मान रहा
वक्त को दोष दे रहे
पर इंसान ना इंसान रहा ...
रिश्तो की मर्यादा भूल,
पैसों के पीछे भाग रहा
मन की सुंदरता त्याग कर
तन की...