...

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इंसान
इंसानों के शहर में इंसानियत की कमी दीखता
मर रहे इंसानों को देख इंसान बगल से गुजर जाता
इंसानों के शहर में इंसानियत की कमी दीखता
इंसानों की यही अदा तो इंसानों पर खूब भाता
इंसानों के शहर में इंसानियत की कमी दीखता

इंसान इंसानों से नफरत रखता और
जीवन भर निभाता इंसानों से शत्रुता
इंसानों के शहर में इंसानियत की कमी दीखता

इंसान भरम पाले हुए हैं बढ़ने ना देंगे इंसानों को आगे
इंसान इंसान का हो चुका है दुश्मन
वो दुश्मनी इंसान कभी ना भुलावे

ईश्वर ने इंसान को क्या सोचकर बनाया ??
पर इंसान अपनी इंसानियत को संभाल ना पाया

कभी जाती कभी धर्म तो कभी मजहब के लिए
इंसान इंसान को मारते आया है
इंसानों की यही सोच तो इंसानों से अलग कर पाया है

इंसानों का कुकर्म इतना बढ़ा है
हैवान भी इंसान पर तरस खाया है
इससे तो अच्छी मेरी है बिरादरी
अपनों में हम नहीं उलझते
है अपनी ऐसी वफादारी

इंसान की इंसानियत इतनी मर चुकी है
अब तो जमीर भी कहता है
इंसान इंसान के लायक नहीं है।।

आनंद
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