...

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गर्दिशों में शजर आए,
आसां न था मगर बंद-ए-ग़म से हम उभर आए,
दुख दर्द ओ अलम में डूबकर वाफ़िर निखर आए,

प्यार ओ मुहब्बत मेरे लिए फकत गुजरा जमाना है,
कर तौबा शहर ए गफलत को हम कर नजर आए,

सुना है बद्दुआएं हैं उस शहर को रकीबों की बहुत,
किए नक़्श-ए-तिलिस्म पर ना काम कोई हुनर आए,

और कर याद वो लम्हात ए हिज्र सब आंसू बहाते हैं,
जाने हैं कितने बशर उस जहां में करके बसर आए,

और सबब कुछ ये भी है उस शहर की वीरानी का,
न देखा बागबा ने फूलों को गर्दिशों में शजर आए,

गुजरे हम जहां भी उन गलियों में तन्हाई नज़र आई,
हो मुखातिब तंग गलियों से हम खोकर मफ़र आए,

© #mr_unique😔😔😔👎