परछाई से पूछा मैंने
परछाई से पूछा मैंने
तू जो साथ चलती मेरे
बिन मतलब के
क्या मेरे अलावा तुझे कोई
और भाया नहीं
परछाई बोली मुझसे
सभी की अपनी अपनी परछाई
देख तेरी ही छवि मुझमें समाई
फिर भला दूर तुझसे
मैं कैसे रह पाई
इक तूने ही मुझे पहचाना नहीं
अपना मुझे माना नहीं
उसके कथन मुझे
द्रवित कर गए
बोली ऐसी कोई बात नहीं
सुना है बुरे वक्त में
अपनी परछाई भी साथ
छोड़ देती
क्या तूने ऐसा सुना नहीं
तूने भी तो ऐसा ही किया
तुझे पता था बिन तेरे चलना
मुश्किल मेरा
फिर ऐसा क्यों तूने किया?
फिर ऐसा...
परछाई बोली ऐसा न करती
तो तुझे मज़बूत बनाती कैसे
परिस्थितियों से लड़ना सिखाती कैसे
जब देखो तब सहारा मेरा
ले चलती थी
दुनियाभर की बातों से दूर...
तू जो साथ चलती मेरे
बिन मतलब के
क्या मेरे अलावा तुझे कोई
और भाया नहीं
परछाई बोली मुझसे
सभी की अपनी अपनी परछाई
देख तेरी ही छवि मुझमें समाई
फिर भला दूर तुझसे
मैं कैसे रह पाई
इक तूने ही मुझे पहचाना नहीं
अपना मुझे माना नहीं
उसके कथन मुझे
द्रवित कर गए
बोली ऐसी कोई बात नहीं
सुना है बुरे वक्त में
अपनी परछाई भी साथ
छोड़ देती
क्या तूने ऐसा सुना नहीं
तूने भी तो ऐसा ही किया
तुझे पता था बिन तेरे चलना
मुश्किल मेरा
फिर ऐसा क्यों तूने किया?
फिर ऐसा...
परछाई बोली ऐसा न करती
तो तुझे मज़बूत बनाती कैसे
परिस्थितियों से लड़ना सिखाती कैसे
जब देखो तब सहारा मेरा
ले चलती थी
दुनियाभर की बातों से दूर...