![...](https://api.writco.in/assets/images/category/big/thriller.webp)
9 views
किराए की जिंदगी
रहता हूं किराये के घर में,
रोज़ सांसों को बेच कर किराया चूकाता हूं।
मेरी औकात है बस मिट्टी जितनी,
बात मैं महल मिनारों की कर जाता हूं।
जल जायेगा ये मेरा घर इक दिन,
फिर भी इसकी खूबसूरती पर इतराता हूं।
खुद के सहारे मैं श्मशान तक भी ना जा सकूंगा,
फिर ज़माने को क्यों दुश्मन बनाता हूं।
रोज़ सांसों को बेच कर किराया चूकाता हूं।
मेरी औकात है बस मिट्टी जितनी,
बात मैं महल मिनारों की कर जाता हूं।
जल जायेगा ये मेरा घर इक दिन,
फिर भी इसकी खूबसूरती पर इतराता हूं।
खुद के सहारे मैं श्मशान तक भी ना जा सकूंगा,
फिर ज़माने को क्यों दुश्मन बनाता हूं।
Related Stories
12 Likes
4
Comments
12 Likes
4
Comments