...

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ग़ज़ल
आज की पेशकश ~

वक़्त के साथ मुकद्दर बदल गये कितने।
देखते देखते मंज़र बदल गये कितने।

हमारे पाँव की ठोकर में जो रहते थे कभी,
बुतों में ढलके वो पत्थर बदल गये कितने।

नींद की कोई दवा काम न आई अपने,
कभी चादर कभी बिस्तर बदल गये कितने।

क़दम क़दम पे गमों ने निभाया साथ मेरा,
शहर बदले कि मेरे घर बदल गये कितने।

वक़्त के साथ बदल जाती है हर शय साहब,
क्या हुआ राहबर ग़र दल बदल गये कितने।
© इन्दु