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आपकीं हवाएँ।
रोज़ रात को याद आती है आपकी,
पता नहीं खुद से पूछती हूँ, कि क्या याद आती है तुम्हे मेरी?
दिन भी अभी बीत चुका है,
1900 की तरह करते हैं आप, जैसे खतों का दौर है।
एक मैसेज ही तो भेजनी होती है,
ऐसे लगता है कि आपको मेरी पड़ी ही नहीं है।
लगता होगा आपको की मैं धन दौलत की प्यासी हूँ,
लेकिन पता नहीं है आपको कि मैं, आपके के लिए तरसती हूँ।
© Pam-1710
पता नहीं खुद से पूछती हूँ, कि क्या याद आती है तुम्हे मेरी?
दिन भी अभी बीत चुका है,
1900 की तरह करते हैं आप, जैसे खतों का दौर है।
एक मैसेज ही तो भेजनी होती है,
ऐसे लगता है कि आपको मेरी पड़ी ही नहीं है।
लगता होगा आपको की मैं धन दौलत की प्यासी हूँ,
लेकिन पता नहीं है आपको कि मैं, आपके के लिए तरसती हूँ।
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