कवि बना हूं दर्द से
कवि बना हूं दर्द से
बन रहा कुछ और था
बन गया कुछ और ।
दुख बुने दर्द बहे
मिली कवि की डोर ।
कुछ कहे जनाब
ट्रेन वाले का छोरा।
काहे की सरकार
काहे का ढ़िंढोरा।
पढ़ लै लिख लेै
नौकर बन जा।
नेतागिरी मत कर
बात म्हारी मान जा।
पर मेरा दुख मेरा दर्द
उन्हें आभास नहीं।
कवि बना हूं दर्द से
अपनों को विश्वास नहीं
© जितेन्द्र कुमार 'सरकार'
बन रहा कुछ और था
बन गया कुछ और ।
दुख बुने दर्द बहे
मिली कवि की डोर ।
कुछ कहे जनाब
ट्रेन वाले का छोरा।
काहे की सरकार
काहे का ढ़िंढोरा।
पढ़ लै लिख लेै
नौकर बन जा।
नेतागिरी मत कर
बात म्हारी मान जा।
पर मेरा दुख मेरा दर्द
उन्हें आभास नहीं।
कवि बना हूं दर्द से
अपनों को विश्वास नहीं
© जितेन्द्र कुमार 'सरकार'