फलसफा-ए-ज़िन्दगी
अनसुलझी गुत्थी हूंँ या कोई फ़लसफ़ा हूँ।
किसी और से नहीं, मैं ख़ुद से ही ख़फ़ा हूंँ।
घुट रही हैं साँसें, मोजिजे़ की तलाश है।
बदनाम हूँ जफ़ा से, मैं असल में वफ़ा हूँ।
खुशियांँ टटोलती हूँ, बेमानी से रिश्तों में,
अपनी ही नज़रों से गिरी कितनी दफ़ा हूंँ।
कभी तोला कभी माशा हो रही है ज़िंदगी,
घाटे का सौदा हूँ या मैं दरअसल नफ़ा हूँ।
तोड़ क़फ़स"नेमत" साबित करदे दुनिया को,
किताब-ए-वफ़ा का सबसे नफीस सफ़्हा हूँ ।
© ✍️nemat🤲
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