...

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कोठा !!!
कोठा!

हर एक तरह के लोग आते है यहां...
जाम से जाम टकराते है यहां...
होती है नुमाइश बेख़ौफ़ जिस्म की यहां...
औरत के अस्तित्व को दाग दाग करते है यहां.

यहां जसबतों से खिलवाड़ होता है...
एक औरत के विश्वास का बलात्कार होता है...
होती है चंद रूपयों में कीमत उसके जिस्म की...
यहां पर तो उसकी आत्मा के साथ विश्वासघात होता है.

कुछ वक्त के मारे अपनी मजबूरियों में यहां आजाते है...
तो किसी को जबरदस्ती यहां पर लाया जाता है....
उमर का तो कोई लिहाज नहीं यहां छोटी बच्चियों को भी बेचा जाता है...

भावनावो की उनके किसी को कदर नहीं होती...
शाम ढल जाने के बाद यहां कभी सुबह नहीं होती...
शरम हया की मर्दों को ज़रा भी पड़ी नहीं.....
उन्हें तो बस अपना शौख पूरा करना होता है...
अंधेरा होजाने पर यहां तो वासना का नंगा नाच प्रस्तुत होता है.

औरतों के यहां अपने कोई नाम नहीं होते..
इज्जत तो कोई देता नहीं बस गालियां देकर बुला लेते है...
इसीलिए बेचारियों के तो यहां कभी परिवार नहीं होते...
प्यार की नजर से तो इन्हे कोई देखता ही नहीं इसीलिए कोठे पर रिश्ते कभी बरकरार नहीं होते।

©Manish_writes