...

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तुझे जो भी चाहे उसे तू दग़ा दे
तुझे जो भी चाहे उसे तू दग़ा दे
क्या चाहता है ये तो बता दे

खोया हुआ है या खो गया है
दिल चाहता है तुझको वफ़ा दे

रोता है तू क्यूँ ग़लती पे मेरी
हाज़िर है मुजरिम जी भर सज़ा दे

ख़्वाहिश है मेरी ये पूरे दिल से
मेरी गुज़र हो और तू सदा दे

हूँ मैं शहर में मेहमान तेरे
क्या ही मज़ा हो तू जो घुमा दे

डरता हूँ कुछ सामने आने से
ज़ैग़म को फिर तू ना रुला दे
© words_of_zaiغम