...

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देखते देखते अजनबी हो गया
देखते देखते अजनबी हो गया
बसता था मुझमें कहां खो गया
मैं लम्हा लम्हा जिसे जीती रही
वो पल पल कैसे धुंधला हो गया
एक शोर नया फिर उठने लगा है यहां
गाता था बरसो से, यहां मुर्दा हो गया
एक एक गुल की कीमत बागबान से पूछो
सामने जिसका गुलिस्तां बियाबान हो गया
सोच से अलग होना क्यूं कर गुनाह हो गया
वो निजाम की हुजूरी में रहा तो महान हो गया
मुझसे रौशन है ये महफिल तेरी, महफिल ए शम्मा हूं मैं
जिसने रौशन किया मुझे, मुझमें ही जल कर तमाम हो गया
#Shubh
Shubhra pandey


© shubhra pandey