...

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गज़ल
जाने कैसे अब वो अपनी गली में चलता होगा ?
मैं तो मर गया, कांटे कौन चुनता होगा ?

उससे मिलने को लोग, एक उम्र चलकर आते हैं
रुख-ए-यार पे नूर यूँही नहीं ठहरता होगा

एक ज़रा सी ख्वाहिश की थी, बरसों पहले उसने
जाने कौन पागल है जो रातों में भटकता होगा ?

महज़ इत्तेफ़ाक़ से तो करामातें नहीं हुआ करतीं
कोई तो कलाकार है जो ऊपर नाटक रचता होगा

खोजने को निकल पड़ा हूँ, आतिश-ए-गुल में
कोई तो फूल होगा जो सच्चाई महकता होगा ?

आजकल जनाब अंजुमन में शरीक नहीं होते
वह तो है ही नहीं जो उनकी खातिर संवरता होगा

ज़माने से थके ज़हन को, माँ की गोद सहलाती है
अनाथों की रूह का बचपन, जाने कैसे बहलता होगा ?

रजाइयों की गर्माहट में सब नींद भरे सोते हैं
सरहदों की बर्फ में किसी का लाडला जगता होगा

चाहत-ए-दर्द से कुछ इस क़द्र मुहब्बत की है
इक़रार-ए-ख़ुशी से बचने को मेरा दिल डरता होगा

उसकी दीद को लौ बनाकर यहाँ शम्में जलाई जाती हैं
जख्मी हुई अनाह की खातिर वह अंधेरों में पढ़ता होगा

हवस की दरिंदगी देख मरने-मारने की इच्छा होती है
बच्चों की मुस्कान देख फिर जीने को दिल करता होगा

मुझको चाहने की गलती पहले औरों ने भी की है
उनके पावन अश्क़ों से मेरे पापों का घड़ा भरता होगा

शोलों जैसी धूप में मेरा बाल भी बाँका नहीं हुआ
जब घर से निकलता हूँ, माँ का साया साथ चलता होगा

दामों के दम पे ही यहाँ सारे काम किये जाते हैं
तंत्र जो यूँ बिक रहा है, ईमान ज़रूर सस्ता होगा

आज जो तुम आई हो, चांदनी बादल छनती है
शर्मा के जमाल-ए-यार से चाँद भी छुपता होगा

साँसों का यह थम जाना यूँही नहीं हो सकता है
तुम्हारे मेरे दरमियान कोई तो बेनाम रिश्ता होगा

आज बड़े ही अरसे बाद धरती कहीं मुस्कुराई है
रण में जाकर देखो यारों, शायद 'सागर' मरता होगा।।


© AbhinavUpadhyayPoet