अतीत के पन्नों में चली गई मेरी कलम एक असम्भव प्रेम गाथा अनन्त में है।।भाग१
खुदा की महोताज है,
सताया जिसने वो केवल अल्लाह -परवरनीगार है,
बानाया जीवन मगर क्यों नहीं बनाया एक संभव,
संपन्न, अन्त में है -
आज एक शब्द ए अल्फाज़ ए म्यान स्वांग ए सून्य मंजर मिला तो जिसें घिन्ननिका संबोधित कहकर संबोधित करते हैं,
वह एक रोज़ क्या बंया करती है,
सुनिए संवाद सहयोगी क्रेंन्द्र (प्रशनवाचक)
कहता फिरता कि वह काई जगह जगह से भिन्न-भिन्न स्थानों से अपनी यात्रा करके लौटता रहता है,,
मगर हैरत की बात यह कि वह कभी कोई उम्मीद ए अल्फाज़ ए सून्य ए स्वांग बुनाता हो...
सताया जिसने वो केवल अल्लाह -परवरनीगार है,
बानाया जीवन मगर क्यों नहीं बनाया एक संभव,
संपन्न, अन्त में है -
आज एक शब्द ए अल्फाज़ ए म्यान स्वांग ए सून्य मंजर मिला तो जिसें घिन्ननिका संबोधित कहकर संबोधित करते हैं,
वह एक रोज़ क्या बंया करती है,
सुनिए संवाद सहयोगी क्रेंन्द्र (प्रशनवाचक)
कहता फिरता कि वह काई जगह जगह से भिन्न-भिन्न स्थानों से अपनी यात्रा करके लौटता रहता है,,
मगर हैरत की बात यह कि वह कभी कोई उम्मीद ए अल्फाज़ ए सून्य ए स्वांग बुनाता हो...