...

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..... कर गया हूँ मैं...
वैसे हँस तो लेता हूँ हर रोज,
पर हर खुशी में आँख भर लिया हूँ मैं ।

अब तो मौत भी मुक़म्मल न होती,
जी-ते-जी जब से मर गया हूँ मैं ।

अब तो खुद में खुशी भी न आती,
तेरी याद से खुदकुशी कर गया हूँ मैं।

वो.. तेरा शक्ल.., हमशक्ल न रहा,
जब से खुद के आईने में संवर गया हूँ मैं ।

ज़िन्दगी में सा.. रे.. ग.. म.. सुन -सुन कर,
अब सारे गम से गुज़र गया हूँ मैं ।

किसी और घर से आती तेरे लिबाज़ की खुशबू,
कभी-कभी हवाओं से भी लड़ गया हूँ मैं ।

मेरी याद के जाल तक हटा दी क्या घर से?
अब तो उस घर से भी निकल गया हूँ मैं ।

तारों को तोड़ लाने की बात तो और... थी,
अब तो हर वादें से मुक़र गया हूँ मैं ।

जिस धूप में मजदूर न जाता छत पर,
तुझे ढूँढते उस धूप से गुज़र गया हूँ मैं ।

अपने महफ़िल-ए-खास को भी नहीं पहचानती,
क्या इतना... भी बदल गया हूँ मैं ?

: सुधीर सुमन

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#Emotional
#Feels....










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