...

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थक चुका हैं।
आज बीमारी से इस दुनिया का क्या हाल है,
कई ज़िंदगियों की हुई कुछ और ही चाल है,
जहाँ एक और बीमार बिस्तर का निकलता जाल है,
तो दूसरी और उसे बंधी हुई दुआओ की ढाल है।।
यहाँ कोई अपना अपनों से ही रिश्ते तोड़ रहा,
तो कोई मदभेद के कारण मुँह मोड़ रहा,
कही कोई अपनी जमापूंजी अपनों के कारण तोड़ रहा,
तो इस बीमारी में कोई अमूल्य रिश्ते छोड़ रहा।।
जहाँ एक और लोग पानी के सैलाब से झुंझ रहे है,
तो दूसरी और उसमे खोए किसी अपने को ढूंढ रहे है,
क्या कुदरत का अनोखा खेल चल रहा यहाँ,
अब लोग नींद से उठकर अपनी आँखे मूँद रहे है।।
अजब आज इस दुनिया का नक्शा बन चूका है,
इस मोड़ पर आकर अब वक़्त भी थक चूका है,
कुदरत के इस खेल मे मनुष्य हार चूका है,
वो भी दुआओ में रोते-रोते अब थक चूका है।।
© Musannif Qalam