...

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फरेब इश्क
हर वक्त गुज़रे रात दिन के सहारे तेरे बिना मैं रोती रही हुं
दर्पण में खुद को निहारु जब जब तब तब मैं दिल को टोती रही हुं
नज़र से नज़र जब नज़र मिली तो नज़र ज़वाने की लग गई है
भरी बेवफ़ाओ की ये महफिल में आस दिलों के मैं खोती रही हुं

हसीन दिलरुबा हुं मैं ये कहकर तूने मुझे जो पुकारा कभी था
फरेबी इश्क का चोला पहना कर सिर से दुप्पटा जो हटाया कभी था
आँख नशीली थी तेरी भी तू मादक बन मदिरा पिलाया कभी था
मासूम थी मैं भोला था दिल मेरा जो दिल से अपने खेलवाया तुझे था


© _Ankaj Rajbhar 🥺