...

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हे हरि !
हे हरि तुम कब आओगे ?
मैं पाठ करूँ,
दिन-रात करूँ,
हे हरि तुम कब आओगे ?
दर्शन को तुम्हारे
मैं प्यासा हूँ,
सब कहते
मैं बैठ धरा पर
आसमान की आस करूँ,
पर हरि तुम आओगे !
मन मेरा यही कहता हैं
तुम आओगे, तुम आओगे !
हे हरि तुम कब आओगे ?
मैं ध्यान करूँ,
मैं जाप करूँ,
हरि मैं तुम्हारी आस करूँ !
हे हरि तुम कब आओगे ?
मथुरा हो या वृंदावन !
गोवर्धन की चोटी तक
मैं खोज तुम्हें आया हूँ !
हरि तुम अब कह भी दो ना,
के तुम कब आओगे ?
मन मेरा हें व्याकुल बड़ा !
मैं रातों में ना सो सकूं !
दिन को भी मैं हरि
तुझे ही याद करूँ !
लोगों की बातें सुनता हूँ !
मैं उनमें भी हरि तुम्हें ही भजता हूँ !
हरि मैं तुम्हें ही ध्यान में रखता हूँ !
मैं द्वापर का अर्जुन बनूँ !
हे हरि तुम क्या मेरा रथ भी चलाओगे ?
मैं सुदामा सा मित्र बनूँ !
हे हरि तुम क्या
मेरे हाथों से भी
दो मुट्ठी चावल खाओगे ?
मैं गीता सा ज्ञान बनूँ !
मैं हरि तुमसे बनूँ !
मैं तुम में ही लीन हो जाऊँ !
अब कह भी दो ना कब आओगे ?
कितना और मुझे सब्र करना बाकी हैं ?
अभी कहाँ कहाँ तुम्हें खोजना बाकी हैं?
हरि तुम अब और ना यूँ तड़पाओ !
अब दिन नजदीक बड़े !
एक बार मुझे तुम अपने दर्शन दे जाओ !

© aaru