...

8 views

अर्धांगिनी....
माता कैकेयी की आज्ञा से
वन रामचंद्र को जाना था
पर रघुवर तो आधे ही थे
आधे कैसे जा सकते थे
जब धनुष तोडकर श्री जी को
था अपना आधा भाग दिया
तब एक पत्नी व्रत का
राघव जी ने था ठान लिया
सीता जी ने रघुनंदन को
अपना सर्वस्व था मान लिया
मेरे रघुनाथ सूर्य की
मै सदा ही छाया रहूँ
वो राजा हो तो मै रानी हूँ
वो वन जाए तो वनवासिन हूं
पर इन दिनों की नारी तो
ठन जायेगी पतिदेव से ही
तुम जाओगे पिकनिक के लिए
मै भी तो जाउंगी ही
पर सिया ने सोचा पता नही
वो माने या नही माने
यदि माता जी से आज्ञा लूं तो
चलेगे उनके न कोई बहाने
इसलिए धीमे धीमे चलकर
माता के सम्मुख खडी हुई
सर झुका हुआ था धरती पर
और उंगलियों से मिट्टी कुरेद रही
माता ने पूछा क्या है बेटा
कुछ वस्तु तुम्हे चाहिए क्या
या लल्ला ने कुछ कहा तुम्हे
या माता की याद आई तुम्हे
तब सीता ने कैकेयी माँ के
उस तीन वरदान की कथा कही
पहला तो भरत के राजा की
दुसरे उनके वनगमन की कथा कही
जब सुनी कौशल्या माता ने
मेरा राम वन को जायेगा...