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अर्धांगिनी....
माता कैकेयी की आज्ञा से
वन रामचंद्र को जाना था
पर रघुवर तो आधे ही थे
आधे कैसे जा सकते थे
जब धनुष तोडकर श्री जी को
था अपना आधा भाग दिया
तब एक पत्नी व्रत का
राघव जी ने था ठान लिया
सीता जी ने रघुनंदन को
अपना सर्वस्व था मान लिया
मेरे रघुनाथ सूर्य की
मै सदा ही छाया रहूँ
वो राजा हो तो मै रानी हूँ
वो वन जाए तो वनवासिन हूं
पर इन दिनों की नारी तो
ठन जायेगी पतिदेव से ही
तुम जाओगे पिकनिक के लिए
मै भी तो जाउंगी ही
पर सिया ने सोचा पता नही
वो माने या नही माने
यदि माता जी से आज्ञा लूं तो
चलेगे उनके न कोई बहाने
इसलिए धीमे धीमे चलकर
माता के सम्मुख खडी हुई
सर झुका हुआ था धरती पर
और उंगलियों से मिट्टी कुरेद रही
माता ने पूछा क्या है बेटा
कुछ वस्तु तुम्हे चाहिए क्या
या लल्ला ने कुछ कहा तुम्हे
या माता की याद आई तुम्हे
तब सीता ने कैकेयी माँ के
उस तीन वरदान की कथा कही
पहला तो भरत के राजा की
दुसरे उनके वनगमन की कथा कही
जब सुनी कौशल्या माता ने
मेरा राम वन को जायेगा
माता ने अपना धीरज खोया
मेरा प्राण नही बच पायेगा
कोमल कोमल से रामचरण
कांटे पत्थर सहे कैसे
मै लोरी रोज सुनाती हू
बिन लोरी नींद आयेगी कैसे
कैकेयी मझली माता है
मै रघुवर की बडी माँ बेटा
इस नाते मेरी बातों का
है बहुत बडा वजन बेटा
मै कैसे भी अपने राम को
वन जाने नही दूंगी
यदि फिर भी वो यदि नही माना
मै अपने प्राण तज दूंगी
इतने मे रामजी वहाँ आए
बहु भाति माता को समझाए
मझली माता ने कुछ कहा नही
ये मेरे पिता की आज्ञा है
और पिता की आज्ञा न
क्या यही आपकी आज्ञा है???
मैया ब्याकुल हो गयी तनिक रहा न धीर
जैसे प्राण के बिना निरजीव हुआ शरीर
बोली मैया
क्या सच मे मेरा प्रेम छोड
जोडोगेे नाता आज्ञा से
क्या सचमुच वनवासी होगे
तोडोगे नाता अयोध्या से ??
माँ मेरे लिए तो दोनो एक जैसा ही है
इसलिए माँ मन मेरा ऐसा ही है
तब सीता जीने लाज छोड
माता से बैन कुछ ऐसे कहे
माताजी के न्यायालय मे
आवेदन करने आई हूँ
चौदह वर्षों के जीवन का
फैसला कराने आई हू
आप ही बताए मुझको माता
इस समय धर्म मेरा क्या है
मै साथ जाऊँ या यही रहूँ
क्या आपकी आज्ञा है माता
है आप पूज्यनीय है उनकी
जिनकी मै एक पुजारीन हूँ
ईसलिए आपकी आज्ञा के लिए
सम्मुख खडी भिखारीन
माता ने कहा
तू तो चंद्रिका चंद्र की है
कैसे अलग रह सकती है
सीते मै तुमसे पूछती हूँ
क्या जीव प्राण से अलग रह सकती है
जब माँ ने आज्ञा दे ही दी
तो राघव भी कुछ कह‌नसके
ऐसी होती है देवियां हिंद की
जो सच्ची अर्धांगिनी बनकर
पति के सुख दुख मे साथ रहे
करती है रक्षा मर्यादा की