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आह्वान
Iआह्वान वक्त का ऐसा हुआ असर अमराई भी बौराई नहीं। तन मन से सींची थी बगिया कली मुसकाई नहीं। रोज सिमटती जा रही चादर चाहतों में कमी नहीं। सिकुड़े सिकुड़े हसरतों को अब रहा जाता नहीं। उम्मीद का दीया जलाए रखना जग का दस्तूर है। जिन्दगी से लड़ते रहो जब तक बाकी नूर है। मुसीबतों में पला तूफानों से कब घबराता है। लहरों को ठेलता जो मोती ढूंढ कर वही लाता है। आओ कस लो कमर अब कुछ करके दिखाना है। कोरोना को मिटाकर खुशहाली का बीज बोना है। कोरोना तो बहाना है, गुप्त महामारी से लड़ना है। बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, आतंकवाद से लड़ना जरूरी है।
हटो नहीं पीछे, डरकर सभी जुल्मों को पछाड़ना है। एक एक हस्त कोटि कोटि हस्त वज्र समान कठोर है। अस्त्र शस्त्र की क्या चाह जब त्याग तप बल साथ है। (मोहन पाठक)
© सात्विक