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!...शर्मिंदा है आज मेरा वतन..!
मेरे आंखों से छुपे है जो नजारे सारे
पर्दे हटने पर नजर आते है सितारे सारे

ये रोशनी और उजाले, ओझल हो तो
फिर नजर आते है यहां पर काले सारे

हर आंख को मयस्सर नहीं देखे हक को
देख कर जो हो जाते है अंधे सारे

जुल्म होता है ख़ामोश निगहबान रहे
भक्तो की जुबां पर लग जाते है ताले सारे

उजड़े चमन में जलते है नशेमन अब भी
आग में घी को लगाते है खबर सारे

जाति–धर्मो से नफरत हुई शेंतानो को
किस मुल्क में आते है ये सारे के सारे

लूट लेते है मिलकर किसी की इज्जत को
खुद को इंसान बताते है ये सब सारे

–-12114