वास्तविकता
वास्तविकता को झुठलाया नहीं जा सकता
हे! कवि श्रेष्ठ
व्याकुल हूँ
बीते दिवस की रात्रि के द्वितीय पहर से
तुम्हारी गरिमा
तुम्हारी आभा
कांति सारी बखान करती है
किन्तु
मेरी व्याकुलता
तुम्हारी उत्सुकता से
जैसे अनजान पड़ती है
हृदय को आद्र वस्त्र की तरह
पूरा निचोड़ने पर
यही निष्कर्ष प्राप्त होता है
कि
तुम्हारी कल्पना से
तुम्हारी अद्वितीय रचना से...
हे! कवि श्रेष्ठ
व्याकुल हूँ
बीते दिवस की रात्रि के द्वितीय पहर से
तुम्हारी गरिमा
तुम्हारी आभा
कांति सारी बखान करती है
किन्तु
मेरी व्याकुलता
तुम्हारी उत्सुकता से
जैसे अनजान पड़ती है
हृदय को आद्र वस्त्र की तरह
पूरा निचोड़ने पर
यही निष्कर्ष प्राप्त होता है
कि
तुम्हारी कल्पना से
तुम्हारी अद्वितीय रचना से...