बन गए...
मेरे अंदर के दु:ख, कब क़हर बन गए
कब आंसू बन गए, कब ज़हर बन गए
रंग दिए जिन्हे इंसां ने, पाश्चात्य सभ्यता से
वे भोले-भाले गाँव अब, सारे शहर बन गए
जो सिर्फ प्यास बुझाते थे, छोटी...
कब आंसू बन गए, कब ज़हर बन गए
रंग दिए जिन्हे इंसां ने, पाश्चात्य सभ्यता से
वे भोले-भाले गाँव अब, सारे शहर बन गए
जो सिर्फ प्यास बुझाते थे, छोटी...