"वह पेड़ जो अकेला था"
गाँव के किनारे,
जहाँ पगडंडी का एक छोर मुड़कर नदी की तरफ जाता था,
वहीं खड़ा था एक पुराना पेड़,
अकेला।
उसके चारों ओर खेत थे,
सूरज की किरणों में चमकते धान के पौधे,
जिनकी हरियाली में सरसराहट थी,
मगर पेड़ स्थिर था।
जैसे किसी पुराने संकल्प की अंतिम निशानी।
लोग उसे “वृद्ध पीपल” कहकर पुकारते,
कुछ बच्चों के लिए वह सिर्फ
कहानियों का एक पन्ना था,
जिस पर बैठी थी घनी छाँव और
शाम को घर लौटते पंछी।
वह पेड़ चुपचाप देखता था —
सुबह-शाम आते-जाते राहगीर,
कभी थकान उतारते,
कभी सवाल छोड़ते...
"क्यों खड़ा है ये यहाँ अकेला?"
उसके नीचे एक पत्थर था,
जिसे लोग देवता मानते,
वहाँ कुछ...
जहाँ पगडंडी का एक छोर मुड़कर नदी की तरफ जाता था,
वहीं खड़ा था एक पुराना पेड़,
अकेला।
उसके चारों ओर खेत थे,
सूरज की किरणों में चमकते धान के पौधे,
जिनकी हरियाली में सरसराहट थी,
मगर पेड़ स्थिर था।
जैसे किसी पुराने संकल्प की अंतिम निशानी।
लोग उसे “वृद्ध पीपल” कहकर पुकारते,
कुछ बच्चों के लिए वह सिर्फ
कहानियों का एक पन्ना था,
जिस पर बैठी थी घनी छाँव और
शाम को घर लौटते पंछी।
वह पेड़ चुपचाप देखता था —
सुबह-शाम आते-जाते राहगीर,
कभी थकान उतारते,
कभी सवाल छोड़ते...
"क्यों खड़ा है ये यहाँ अकेला?"
उसके नीचे एक पत्थर था,
जिसे लोग देवता मानते,
वहाँ कुछ...