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वक्त
बड़ा खुद्दार है वो,
ना किसीके लिए रुकता है,
ना किसीके सामने झुकता है,
बस अपने खामोशी में
टिक टिक करके बढता रहता है,
ओर इसी राह के साथ सबको झुकाता है;
उसका ना कोई अपना ना कोई पराया,
वो तो बस अपने ही
ओर अपने ही राह में बेधुन्द है,
ओर उसकी गति भी कायम है।
वो है हर एक घड़ी की काटो में,
है वो पेड़ो की पत्तियों में,
है वो लहलहरती हवाओं में भी
ओर वो है हर एक पल इंसान में भी
उसके दुःखों ओर आनंद में भी....
फिर भी है वो अकेला
अपनी ही राह के साथ
नजाने किसे ढूंढता
अपनी ही गति के साथ....।
© Abhang Diary
ना किसीके लिए रुकता है,
ना किसीके सामने झुकता है,
बस अपने खामोशी में
टिक टिक करके बढता रहता है,
ओर इसी राह के साथ सबको झुकाता है;
उसका ना कोई अपना ना कोई पराया,
वो तो बस अपने ही
ओर अपने ही राह में बेधुन्द है,
ओर उसकी गति भी कायम है।
वो है हर एक घड़ी की काटो में,
है वो पेड़ो की पत्तियों में,
है वो लहलहरती हवाओं में भी
ओर वो है हर एक पल इंसान में भी
उसके दुःखों ओर आनंद में भी....
फिर भी है वो अकेला
अपनी ही राह के साथ
नजाने किसे ढूंढता
अपनी ही गति के साथ....।
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