...

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मेरे पिता...
पिता से मैं शुरू,
पिता ही मेरे गुरु,
पिता के सख्त रवैए से थोड़ा डरूं
पर पिता से प्यार बहुत करूं।

पिता से मिला नाम,
पिता से मिली पहचान,
पिता साथ हो तो लगता है
संग मेरे सारा जहान।

मेरी हताशा पर उत्साह को बढ़ाया है,
मेरी हार पर पिट को थपथपाया है,
मेरी उलझनों को सुलझाने का काम
पिता तो है हर समस्या का समाधान।

अंगुली छोड़ दी है पिता ने
ताकि मैं चल सकूं
मगर इस बात से मैं नहीं हूं अनजान,
हाथ हमेशा खोले रखते हैं पिता,
ताकि कदम डगमगाए जब भी मेरे
वो लेंगे थाम।

मैं न हो जाऊं परेशान,
वो मुस्कुराते है इस कदर
जैसे कोई गम ही नहीं,
खुशियां कम ही नहीं,
पिता तो है इतने मजबूत इंसान।

हर रोज मेहनत की है पिता ने
ताकि मैं पा संकू अपना मुकाम,
जो चाह वो लाकर दिया,
मेरे बेहतर कल के लिए अपना आज खर्च कर दिया।
जाने कितना सफर किया है पिता ने
हमारी जरूरतों को पूरा करने में
एक पल का नहीं लिया विराम
पिता तो है इतने महान।

बहुत कुछ लिख दूं पिता के नाम
पर पिता की महिमा का नहीं कोई परवान,
मेरी तो जमीं, मेरा तो आसमान,
मेरी खुशी, मेरा तो सम्मान,
मेरी उम्मीदों का बांध,
पिता तो है मेरे भगवान।
✍️मनीषा मीना