ज़िन्दगी :एक कविता
ज़िन्दगी की कहानी कुछ इस कदर चल रही है
जो है उसकी कोई कदर ही नहीं,
जो नहीं है उसकी हाल _ख़बर चल रही है
कतरा कतरा ज़र्रे _ज़र्रे में होकर
ज़िन्दगी कुछ यूं ही मचल रही है
रात की तो रही बात अभी दूर
दिन की शाम भी कुछ ऐसे ढल रही है
दोपहर है अभी हुई नहीं
फ़िर भी बर्फ सी पिघल रही है
हूं शान्त मैं ऊपर से कोई जाने क्या
कितनी भावनाएँ मन में उबल रहीं हैं
हैं तैयार हम आगे बढ़ने को जरूर
आकांक्षाएं दिल में उछल रहीं हैं
नहीं है प्रमाण कोई पास दिखाने को
कैसे बताऊँ ख्याल कैसी अन्दर टहल रहीं हैं
हैं मिजाज़ उपद्रव करने को तैयार
जज़्बात यादें उगल रही है
हद से पार हो रही है बर्दाश्त की सीमा
फ़िलहाल तो है कुछ यूं कि
ज़िन्दगी एक कविता सी निकल रही है।।
कल्पना कुछ और, सच्चाई कुछ और
फ़िर भी शिकायतें मजधार में पल रहीं हैं
थोड़ी सी खुशियां और थोड़ा सा ग़म
कभी बन अंगारे सी गल रही है
कभी कोई छोड़ देता, कोई हाथ थाम लेता
कहीं दर्द अन्दर ही अन्दर जल रही है
लफ्ज़ शायद कम होंगे कहने में
इसीलिए बस यहीं बयां कर सकती हूं
थोड़ी खट्टी थोड़ी बेचैन थोड़े सुकून के गलियारों में बस ज़िन्दगी यूं ही कविता सी चल रही है।।
© Princess cutie
जो है उसकी कोई कदर ही नहीं,
जो नहीं है उसकी हाल _ख़बर चल रही है
कतरा कतरा ज़र्रे _ज़र्रे में होकर
ज़िन्दगी कुछ यूं ही मचल रही है
रात की तो रही बात अभी दूर
दिन की शाम भी कुछ ऐसे ढल रही है
दोपहर है अभी हुई नहीं
फ़िर भी बर्फ सी पिघल रही है
हूं शान्त मैं ऊपर से कोई जाने क्या
कितनी भावनाएँ मन में उबल रहीं हैं
हैं तैयार हम आगे बढ़ने को जरूर
आकांक्षाएं दिल में उछल रहीं हैं
नहीं है प्रमाण कोई पास दिखाने को
कैसे बताऊँ ख्याल कैसी अन्दर टहल रहीं हैं
हैं मिजाज़ उपद्रव करने को तैयार
जज़्बात यादें उगल रही है
हद से पार हो रही है बर्दाश्त की सीमा
फ़िलहाल तो है कुछ यूं कि
ज़िन्दगी एक कविता सी निकल रही है।।
कल्पना कुछ और, सच्चाई कुछ और
फ़िर भी शिकायतें मजधार में पल रहीं हैं
थोड़ी सी खुशियां और थोड़ा सा ग़म
कभी बन अंगारे सी गल रही है
कभी कोई छोड़ देता, कोई हाथ थाम लेता
कहीं दर्द अन्दर ही अन्दर जल रही है
लफ्ज़ शायद कम होंगे कहने में
इसीलिए बस यहीं बयां कर सकती हूं
थोड़ी खट्टी थोड़ी बेचैन थोड़े सुकून के गलियारों में बस ज़िन्दगी यूं ही कविता सी चल रही है।।
© Princess cutie