...

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बचपन....
वो ख्वाबों का गाँव
वो बरगद का छाँव
कभी न थकते थे पाँव
मेरे बचपन का घराँव

वो मौसम ही मेरे लिए उपर्युक्त थे !!
सुहाने से वो वक़्त भी क्या वक़्त थे !!


छुक-छुक की रेल
वो छुपे-छुपाई का खेल
उस वक़्त था सबमें ही मेल
मेरे मन में ना थे इतना झमेल

सारी दुख-विपदाओं से मुक्त थे !!
सुहाने से वो वक़्त भी क्या वक़्त था !!


ज़िद करना हमारा,,
था मासूम सा बेचारा,,
माँ की आंखों का तारा,,
सबकी नजर में था मैं सितारा,,

उस वक़्त परिवार भी सब संयुक्त थे !!
सुहाने से वो वक़्त भी क्या वक़्त थे !!


नदी किनारे से मिट्टी लाना,,
खूबसूरत सा घरौंदा बनाना,,
रो-रो करके वो माँ को मनाना,,
बाबा के बटुए से सिक्के चुराना,,

दादा की बातें ही सबसे प्रयुक्त थे !!
सुहाने से वो वक़्त भी क्या वक़्त था !!


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© कुन्दन प्रीत