दाग
कोई याद आता है तो आता चला जाता है,
इश्क की उम्र कोई बताए तो कैसे बताए।
ज़िन्दगी से हार जाता तो खुद के पास आ जाता है,
कोई खुद को समझाए तो कैसे समझाए।
खुद से ज्यादा दुनिया से वादा निभाता चला जाता है,
अक्स खुद का दिखाए तो कोई कैसे दिखाए।
बलात्कार जिसका हुआ सज़ा उसी को मिलती है गुनेहगार को नहीं,
दाग दामन से हटाए तो कोई कैसे हटाए।
© विवेक सुखीजा
इश्क की उम्र कोई बताए तो कैसे बताए।
ज़िन्दगी से हार जाता तो खुद के पास आ जाता है,
कोई खुद को समझाए तो कैसे समझाए।
खुद से ज्यादा दुनिया से वादा निभाता चला जाता है,
अक्स खुद का दिखाए तो कोई कैसे दिखाए।
बलात्कार जिसका हुआ सज़ा उसी को मिलती है गुनेहगार को नहीं,
दाग दामन से हटाए तो कोई कैसे हटाए।
© विवेक सुखीजा