...

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मन और सृष्टि
पेड़ से पत्ता
कोई मुक्त हुआ
जैसे
मैं ही मुक्त हो गया
ये कैसा मन है
भरता ही नहीं
रिक्त है सब रिक्त
चलो सरासर सृष्टि का
सोपान करे मन तृप्त करे
विषयों का व्यापार
या इंद्रियों का व्यापार
क्या इससे हम
मन तृप्त करें
इस बाजार में
शांति और विस्वास कहां है
ऐसे में अनंत है
सृष्टि का विस्तार
ये सूरज की तपन
चंद्र की शीतलता
रेत के टीले पर बैठ कर
चलो काव्य पाठ करे
वो समन्दर की लहरें
वो पत्थर से गिरता झरना
खिलखिलाते फूलों के बीच
तितलियों का इंतजार करे
आओ प्रिए हम सृष्टि का
सोपान करे