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वीर रस
#TheUnrequitedLove
वीर रस
मस्तकों के झुंड, अरि-मुंड, तुण्ड-तुण्ड, रण-क्षेत्र में, प्रचंड तू बिखेर दे,
चल-चल हो अचल, पर्वतों सा हो अटल, खलबली शत्रु-समूह धूल सा धकेल दे।

यूँ ही गरज-गरज, अरि-दल पर बरस, मुक्ति-मार्ग तू दिखा, चुटकी में मसल दे।
बन स्वयं तू कृपाण, तज मोह निज प्राण, निज आन-बान-शान तू पहल दे।

कौन सामने टिका, सिर धरनी बिछा, मार-मार, काट-काट वीरोचित शगल दे।

बन घन-घन सा बरस, तोहे साजे वीर-रस, वीरता का अपनी प्रमाण ,
लक्ष्य सामने खड़ा, किस सोच में पढ़ा, साध लक्ष्य चल संधान कर।

काल सा तू प्रहार कर, बस एक ही वार कर, सिर बैरी धड़ उखाड़ धर।

भूमि-भूमि कण-कण, रहे अक्षुण्य प्रण कर, दुश्मन सरहदों से निकाल कर,
बन स्वयं ढाल तू, कर यूँ कमाल तू, कर शमशीर हदों से पार कर।

रंग-रंग तू बदल यूँ हो काल गति चल, सारी पृथ्वी को ही तू लाल कर,
आँख देखे तेरी ओर, तू बन सिरमौर, गरदनें काँधों से उतारकर।