...

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ख़ामोश ख़्वाहिशें
दूर ले गई हैं हमको ये ख़ामोश ख्वाहिशें,
ज़ज़्बातों को छिपाने की वो हर एक शाज़िशें |

आसमान की ख़ामोशी में छिपे राज़ की तरह दिल मे ज़ज़्बात दबे हैं,
चमकते सितारों के बीच गेहरे अंधेरों से लिपट कर जीने की कई कोशिशें हैं |

पतझड़ के सूखें पत्तों सी अब झड़ चुकी हैं वो सारी आशाएँ,
हवाओं के बहाब् मे अब भटक चुकी हैं वो सारी राहें |

पंछीयों की तरह ही उड़ चुकी हैं वो... और उड़ती ही चली जाती हैं,
अब चाहे बसंत आए या सीसीर बस ये बेहती और बेहती ही चली जाती हैं |

साथ अब रेह गए हैं तो बस कुछ तन्हा भरे लम्हें जो ख़ामोश हैं,
ज़ज़्बातों को छिपाने की कोशीश करते ये सिर्फ़ और सिर्फ़ मज़बूरी मे ज़िंदगी जीए जा रहे हैं |

© Harshhh