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उलझन
अब तो तुम्हे बात करने की तलब भी ना रही...
शायद अब मैं जैसी पहले थी, वैसी ना रही...
मेरी भी अब नाराजगी ना रही...
शायद मेरी दिल में वो तड़प ना रही..।
तेरा मेसेज भी फॉर्मेलिटी वाला हो गया है...
ऐसा लगता है जैसा पूरा बन्दा ही चेंज हो गया है...
मेरा दोस्त तो नहीं था तू...
तो मतलब की बात करने वालों सा हो गया है..।
तू गुमसुम सा रहने लगा है...
क्या तेरे दिल में अब कोई बात नहीं है...
मगर बोलना ही नहीं चाहता है तू...
शायद अपनेपन वाली मुझ में अब बात नहीं है...।
© jyoti
शायद अब मैं जैसी पहले थी, वैसी ना रही...
मेरी भी अब नाराजगी ना रही...
शायद मेरी दिल में वो तड़प ना रही..।
तेरा मेसेज भी फॉर्मेलिटी वाला हो गया है...
ऐसा लगता है जैसा पूरा बन्दा ही चेंज हो गया है...
मेरा दोस्त तो नहीं था तू...
तो मतलब की बात करने वालों सा हो गया है..।
तू गुमसुम सा रहने लगा है...
क्या तेरे दिल में अब कोई बात नहीं है...
मगर बोलना ही नहीं चाहता है तू...
शायद अपनेपन वाली मुझ में अब बात नहीं है...।
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