...

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kyun!!
ये बेपरवाह मेरा रहना,
तेरे अलावा, किसी और के साथ भी तो चलता नहीं,
फिर क्यूँ खुदा को तेरा- मेरा इश्क़ दिखता नहीं?

माना मौजूद हैं लाखों चेहरे इस जमीं पर,
शायद तुझसे भी खूबसूरत,
फिर क्यूँ मेरी आँखो में किसी और का चेहरा बसता नहीं?

हजारों रंग हैं बिखरे पड़े महफ़िलों में,
फिर क्यूँ मेरी पलकों से तेरी यादों का रंग उतरता नहीं?

देखा नहीं है मुद्दतों से तुझे, दिल बेचैन है बड़ा,
ये हाल- ए- दिल जानते हुए भी,
फिर क्यूँ तू मुझसे मिलता नहीं?

है शिकायतें ये मेरी , तुझसे कुछ इस कदर,
कि इश्क़ की आहट अगर तेरे दिल में भी है,
फिर क्यूँ तू ये अधूरा इश्क़, मुकम्मल करता नहीं?