...

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क़यामत
क़यामत रात कि शांत रात्रि
उसी में निराशाओं से भारी इस
निःसंग नायक कि अन्तरमात्मा
मन में कभी प्रज्वलित न हुआ !!
और अनजाने में खोया हुआ अग्नि..
बेहेता हुआ आँशुओ कि धारा .. !!
सपनें जिंदगी के
जो आग के जवाला में
जाल रहा हो !!
कलिजे के टुकड़े...
फिर भी...
मौत सरूप सत्य को
खोजता नहीं में !!
क्योंकि
मेरा जीवन मुझे प्रिय है!
इसे प्यार करने के भी वजहों को
मसल नहीं सकतें ... !!