...

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रात
पढा था कही..
के रातो के अंधेरे सच कहलवाते है लबो से ।
अब सच लगता है ये ...
रात भी यही है और लफ्ज़ भी ..
सच कहू.. लगता है सच पढ़ रही हूँ एक अरसे बाद...
अनजाने लफ़्ज़ों का सच
यहा लिखा है किसी ने बेबजह सा
मेरी ही तरह।
जो लिखा गया है 'सच' कह देने के लिए ।
रातो से उतर जाए सच का बोझ यू जो लिए फिरते है सभी झूठी मुस्कुराहटो मे दबाकर दिन भर मन पर ।
कुछ कम हो शायद ये बोझ 'कहकर'
ना सही लिख कर
स्याही मे बसाकर ।

© Meenakshi ___ मीशा✒️