...

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क्या अजीब सा ये वक़्त आ गया
क्या अजीब सा ये वक़्त आ गया
पूरा संसार इस सोच में समा गया

कहाँ गयी वो खिलखिलाती हँसी
क्यों चुन ली हमने खुद के लिए उदासी

क्या सोचा था पहले कभी कल के बारे में
फिर क्यों आज ये दिल डरता है सोच के इस बारे में

जो अपने हाथ नहीं क्यों उसके लिए सोचना है
जिन बातों का ख्याल रखना है क्यों न उन पर ध्यान देना है

डरकर या डराकर कौनसा कुछ मिल जाना है
पर एक मदद का हाथ बहुत कुछ कर सकता है

फर्क सिर्फ सोच का है ,मांयूसी देखोगे मांयूसी मिलेगी
खुशियाँ बाँटोगे खुशियाँ मिलेंगी

वक़्त का क्या है ये तो पल में पलटता है
आज बुरा है तो कल फिर इसकी एक नई अदा है।
------------- हर्षिता अग्रवाल