इन्सान या अभिशाप.....
होकर शिकस्त शहर का वो राह सुना हो गया।
देखा जो बढ़ते जुल्म को घर बार सुना हो गया।
क्या न्याय क्या अभिशाप है भगवान बसते हैं कहा।
अपराध अब महफूज है वो न्याय देवी है कहा।
हो रहे अत्याचार है राजा की कुर्शी बिक रही।
हो भ्रष्ट जो हर कर्म में उसको ही कुर्शी मिल रही।
सच्चाई अब छुपने लगी मिथ्या दलील गवाह से।
भगवान की ताकत है क्या सब डर...
देखा जो बढ़ते जुल्म को घर बार सुना हो गया।
क्या न्याय क्या अभिशाप है भगवान बसते हैं कहा।
अपराध अब महफूज है वो न्याय देवी है कहा।
हो रहे अत्याचार है राजा की कुर्शी बिक रही।
हो भ्रष्ट जो हर कर्म में उसको ही कुर्शी मिल रही।
सच्चाई अब छुपने लगी मिथ्या दलील गवाह से।
भगवान की ताकत है क्या सब डर...