...

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तुम्हें क्या समर्पित करूं
तुम्हें क्या समर्पित करूं?

एक मौन है,
और हाँ
यह एक वृक्ष
जो लगाया है
मैंने
तुम्हारे नाम से

बरस दर बरस
यह बढ़ेगा
फैलेगा
आशियाँ बनेगा
अनगिनत जीव जंतुओं का

हम जब नहीं होंगे
तब भी यह रहेगा,
जीवन की निरंतरता
का सतत प्रतीक,
दोहराएगा
मेरी खामोशी और
तुम्हारे समर्पण
की गाथा
बरस दर बरस

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