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अंगाकर रोटी
अंगाकर रोटी

हम हैं छत्तीसगढ़ की पहचान, हमे है खुद पर शान!
बनता हूं मैं चावल आटे से, डालते मुझे थोड़ा नमक हैं।
रख दो पत्तो के बीच, हाथ से देते मुझे आकार हैं।
पकता मैं चूल्हे की धीमी आंच में, करते सब मुझे बहुत प्यार हैं।
परोसा जाता मैं पाताल चटनी के साथ, नही थकते करते वाह-वाह जोड़ कर हाथ।
लो अब बारिश की भी हो गई शुरुआत हैं।
मिलते है अब हर घर की आंगन और खाट में।
दादी-नानी बनाती हैं मुझे बड़े प्यार से।
और मां को भी बता दिया है उसने ये डांट के।
राम-राम संगवारी अब चलता हूं अपने रास्ते।

-Mitika
© profoundwriters